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महाभारत में सबसे महान योद्धा कौन था जो अकेले पूरे युद्ध को समाप्त कर सकता था?By वनिता कासनियां पंजाबकोई नही। अगर कर सकता तो महाभारत के युद्ध को 18 दिनों तक चलने की आवश्यकता ही नही थी।इस उत्तर को पढ़ने से पहले अनुरोध है कि अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा को कृपया थोड़ी देर अलग रख दें। हम सभी की श्रीकृष्ण में श्रद्धा है किंतु इस युद्ध के वास्तविक कारण और महत्व को समझने के लिए कृपया कुछ देर के लिए हम श्रीकृष्ण को ईश्वर ना समझ कर एक असाधारण मनुष्य मान लेते हैं ताकि दोनो पक्षों का बल अच्छे तरह से समझ सकें। आइये अब आरम्भ करते हैं।जो लोग बर्बरीक का नाम ले रहे हैं उन्हें ये बता दूं कि बर्बरीक जैसा कोई चरित्र मूल व्यास महाभारत में है ही नही। अर्थात घटोत्कच के पुत्र के रूप में बर्बरीक, अंजनपर्व एवं मेघवर्ण का वर्णन तो है लेकिन बर्बरीक की तपस्या, सिद्धि, तीन बाण, शीश दान इत्यादि का जो वर्णन है वो मूल व्यास महाभारत में नही है। वो कथा लोककथाओं में अधिक प्रसिद्ध है। और अगर था भी तो वरदान प्राप्त योद्धाओं की महाभारत में कोई कमी नही थी। इसीलिए बर्बरीक को यही पर छोड़ देते हैं।अर्जुन के दिव्यास्त्रों की भी बड़ी चर्चा होती है किंतु ये भी याद रखें कि वो अकेला नही था जिसके पास दिव्यास्त्र थे। महाभारत का युद्ध उन योद्धाओं से भरा था जिनके पास विभिन्न प्रकार के दिव्यास्त्र थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, भगदत्त, कृपाचार्य, कृतवर्मा, जयद्रथ, सुशर्मा, बाह्लीक, सुदक्षिण, श्रीकृष्ण, सात्यिकी, द्रुपद, विराट, धृतकेतु, मलयध्वज इत्यादि ऐसे योद्धा थे जिनके पास अनेकानेक दिव्यास्त्र थे।ऐसा ना समझें कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ ही नही। दोनो पक्षों के योद्धाओं द्वारा कई बार दिव्यास्त्र का प्रयोग हुआ। विशेषकर भीष्म और अर्जुन के युद्ध मे कई बार दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ और अर्जुन और कर्ण के अंतिम युद्ध मे तो केवल दिव्यास्त्रों का ही प्रयोग हुआ।अगर महास्त्रों (ध्यान दें, साधारण दिव्यास्त्र नही) की बात की जाए तो ये सत्य है कि अर्जुन के पास पाशुपतास्त्र था जिससे सबका नाश तत्काल किया जा सकता था किंतु पाशुपत उस युद्ध मे कभी प्रयोग ही नही किया गया। उसका एक कारण ये भी था कि पाशुपत का प्रयोग स्वयं से निर्बल शत्रु पर नही किया जा सकता था अन्यथा वो चलाने वाले का ही नाश कर देता था। महाभारत में अर्जुन के समकक्ष योद्धा गिने चुने ही थे इस लिए भी पाशुपतास्त्र का प्रयोग नही किया गया। दूसरा महाअस्त्र नारायणास्त्र अश्वथामा के पास था और उसका प्रयोग हुआ भी किन्तु श्रीकृष्ण ने पांडवों को बचा लिया। अब अगर बात करें ब्रह्मास्त्र की तो उस युग मे भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा और अर्जुन, इन पाँच योद्धाओं के पास ब्रह्मास्त्र था। इनमें से अश्वथामा के पास ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान ही था। कर्ण को इसका पूरा ज्ञान था किंतु वो श्रापग्रस्त था इसी कारण अर्जुन से अंतिम युद्ध मे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग ना कर सका। इसके अतिरिक्त परशुराम के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु उन्होंने युद्ध मे भाग नही लिया। कुछ लोग समझते हैं कि श्रीकृष्ण के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु ऐसा नही है, उनके पास ब्रह्मास्त्र होने का कोई वर्णन महाभारत में नही है। किन्तु श्रीकृष्ण तो श्रीहरि के पूर्णावतार है इसीलिए उनके पास ब्रम्हास्त्र होने, ना होने से कोई फर्क नही पड़ता।इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे दिव्यास्त्र भी थे जिनका प्रयोग केवल किसी एक योद्धा को ही था। जैसे प्रस्वापास्त्र केवल भीष्म के पास ही था, जिसका प्रयोग वे परशुराम के विरुद्ध युद्ध मे करने वाले थे किंतु किया नही। नारायणास्त्र का ज्ञान केवल अश्वथामा और श्रीकृष्ण को था और भार्गवास्त्र का ज्ञान केवल कर्ण के पास ही था। इसके अतिरिक्त सुदर्शन चक्र को केवल श्रीकृष्ण और परशुराम ही धारण कर सकते थे और पाशुपतास्त्र केवल अर्जुन के पास था। पता नही ये कितना प्रामाणिक है किंतु कई जगह वर्णन है कि भीष्म और द्रोण के पास ब्रह्मशिरा का ज्ञान भी था जो उन्हें परशुराम से मिला। ब्रह्मशिरा ब्रह्मास्त्र से 4 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है। हालांकि परशुराम ने कर्ण को ये ज्ञान नही दिया और ना ही द्रोण ने अर्जुन और यहाँ तक कि अश्वत्थामा को भी इसका ज्ञान नही दिया।इतने वृहद विश्लेषण की आवश्यकता इसीलिए पड़ी कि आप ये समझ लें कि महाभारत में केवल अर्जुन के पास ही दिव्यास्त्र नही थे। हाँ, अन्य योद्धाओं की तुलना में उसके पास कुछ अधिक दिव्यास्त्र थे जो उसने इंद्र से प्राप्त किये थे। दूसरे कि जो ये समझते हैं कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग नही हुआ वे भी गलत हैं। उस महायुद्ध में भयंकर मात्रा में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ था। उस युद्ध मे ऐसे कई योद्धा थे जो शीघ्रता से उस युद्ध को समाप्त कर सकते थे। जैसा कि श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि अगर केवल भीष्म नही होते तो वो युद्ध केवल 1 दिन में जीता जा सकता था।तो अब प्रश्न आता है कि जब महाभारत में इतने महान योद्धा थे तो वो युद्ध 18 दिनों तक क्यों खिंच गया? उत्तर है केवल श्रीकृष्ण के कारण।आप इस युद्ध के उद्देश्य को जानने का प्रयास कीजिये। श्रीकृष्ण का उद्देश्य इस युद्ध के द्वारा अधिक से अधिक योद्धाओं का नाश कराना था और वो भी दोनों ओर से। कहा जाता है कि उस समय पृथ्वी का भार इतना बढ़ गया था कि उसके बोझ से पृथ्वी फट जाती। पृथ्वी का बोझ कम करना अत्यंत आवश्यक था और श्रीकृष्ण का अवतरण वास्तव में इसी कारण हुआ था, ना कि कंस को मारने के कारण। अगर ये युद्ध जल्दी समाप्त हो जाता तो उनका ये उद्देश्य पूर्ण नही हो पाता। यही कारण है कि उनके ही कारण ये युद्ध इतने दिनों तक चला।वास्तव में श्रीकृष्ण उस युद्ध मे अद्भुत भूमिका निभा रहे थे। उन्हें दोनो ओर के योद्धाओं का नाश भी कराना था और इस बात का ध्यान भी रखना था कि पांडवों की पराजय ना हो। वो उस युद्ध मे कितने दवाब में होंगे इसका हम और आप अनुमान भी नही लगा सकते।यही कारण था कि उन्होंने युद्ध मे शस्त्र ना उठाने की प्रतिज्ञा कर ली और उनकी प्रेरणा से बलराम ने भी युद्ध मे भाग नही लिया ताकि वो युद्ध अधिक समय तक चल सके। इन दोनो के युद्ध मे भाग लेने पर संभव था कि युद्ध कुछ जल्दी समाप्त हो जाता और श्रीकृष्ण का उद्देश्य अधूरा रह जाता। जो लोग उनपर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हैं वे ये जान लें कि महाभारत के 36 वर्ष पश्चात जब यादवों की संख्या और बल बहुत अधिक बढ़ गया तो स्वयं श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने ही यादव वंश का नाश कर दिया। गांधारी का श्राप तो बस निमित्तमात्र था।अब जाते जाते श्रीकृष्ण को एक योद्धा के रूप में भी देख लेते हैं। वे श्रीहरि के पूर्ण अवतार थे और उनकी सभी 16 कलाओं के साथ जन्में थे। श्रीहरि के सभी शस्त्र उनके पास थे किंतु इसपर भी कई युद्ध मे उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि इसके पीछे भी उनका उद्देश्य वही था जो महाभारत युद्ध के पीछे था।जैसे जरासंध से वे 18 वर्ष तक युद्ध करते रहे और उसकी सेना को समाप्त करने के बाद भी मथुरा छोड़ द्वारिका में आकर बस गए। शाल्व और उनका द्वंद 26 दिनों तक चला था। सुभद्रा के वचन के कारण जब श्रीकृष्ण और अर्जुन में युद्ध हुआ था तो वो 11 दिनों तक चलता रहा जबतक दोनो ने स्वयं युद्ध नही रोका। पौंड्रक और उनका युद्ध 16 दिनों तक चला था, एकलव्य का वध उन्होंने तीन दिन के युद्ध के पश्चात किया। जाम्बवन्त और उनका युद्ध 23 दिनों तक चला। बाणासुर के साथ उनका युद्ध 1 मास तक चला जिसके बाद अंततः भगवान शंकर को बाणासुर की सहायता के लिए आना पड़ा।इसीलिए ये जान लें कि महाभारत का युद्ध इतने दिन इसी कारण चला क्योंकि श्रीकृष्ण ऐसा ही चाहते थे। और कोई ऐसा नही था जो उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त कर देता।आशा है आपको उत्तर तर्कसंगत लगा होगा। अब जाते जाते आपको एक प्रश्न के साथ छोड़े जा रही हूँ।"आपमे से कितने लोगों को लगता है कि वर्तमान में पृथ्वी का भार (जनसंख्या) उतारने के लिए ऐसे ही किसी महायुद्ध की आवश्यकता है?"जय श्रीकृष्ण। 🚩

महाभारत में सबसे महान योद्धा कौन था जो अकेले पूरे युद्ध को समाप्त कर सकता था?




By वनिता कासनियां पंजाब
कोई नही। अगर कर सकता तो महाभारत के युद्ध को 18 दिनों तक चलने की आवश्यकता ही नही थी।
इस उत्तर को पढ़ने से पहले अनुरोध है कि अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा को कृपया थोड़ी देर अलग रख दें। हम सभी की श्रीकृष्ण में श्रद्धा है किंतु इस युद्ध के वास्तविक कारण और महत्व को समझने के लिए कृपया कुछ देर के लिए हम श्रीकृष्ण को ईश्वर ना समझ कर एक असाधारण मनुष्य मान लेते हैं ताकि दोनो पक्षों का बल अच्छे तरह से समझ सकें। आइये अब आरम्भ करते हैं।
जो लोग बर्बरीक का नाम ले रहे हैं उन्हें ये बता दूं कि बर्बरीक जैसा कोई चरित्र मूल व्यास महाभारत में है ही नही। अर्थात घटोत्कच के पुत्र के रूप में बर्बरीक, अंजनपर्व एवं मेघवर्ण का वर्णन तो है लेकिन बर्बरीक की तपस्या, सिद्धि, तीन बाण, शीश दान इत्यादि का जो वर्णन है वो मूल व्यास महाभारत में नही है। वो कथा लोककथाओं में अधिक प्रसिद्ध है। और अगर था भी तो वरदान प्राप्त योद्धाओं की महाभारत में कोई कमी नही थी। इसीलिए बर्बरीक को यही पर छोड़ देते हैं।
अर्जुन के दिव्यास्त्रों की भी बड़ी चर्चा होती है किंतु ये भी याद रखें कि वो अकेला नही था जिसके पास दिव्यास्त्र थे। महाभारत का युद्ध उन योद्धाओं से भरा था जिनके पास विभिन्न प्रकार के दिव्यास्त्र थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, भगदत्त, कृपाचार्य, कृतवर्मा, जयद्रथ, सुशर्मा, बाह्लीक, सुदक्षिण, श्रीकृष्ण, सात्यिकी, द्रुपद, विराट, धृतकेतु, मलयध्वज इत्यादि ऐसे योद्धा थे जिनके पास अनेकानेक दिव्यास्त्र थे।
ऐसा ना समझें कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ ही नही। दोनो पक्षों के योद्धाओं द्वारा कई बार दिव्यास्त्र का प्रयोग हुआ। विशेषकर भीष्म और अर्जुन के युद्ध मे कई बार दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ और अर्जुन और कर्ण के अंतिम युद्ध मे तो केवल दिव्यास्त्रों का ही प्रयोग हुआ।
अगर महास्त्रों (ध्यान दें, साधारण दिव्यास्त्र नही) की बात की जाए तो ये सत्य है कि अर्जुन के पास पाशुपतास्त्र था जिससे सबका नाश तत्काल किया जा सकता था किंतु पाशुपत उस युद्ध मे कभी प्रयोग ही नही किया गया। उसका एक कारण ये भी था कि पाशुपत का प्रयोग स्वयं से निर्बल शत्रु पर नही किया जा सकता था अन्यथा वो चलाने वाले का ही नाश कर देता था। महाभारत में अर्जुन के समकक्ष योद्धा गिने चुने ही थे इस लिए भी पाशुपतास्त्र का प्रयोग नही किया गया। दूसरा महाअस्त्र नारायणास्त्र अश्वथामा के पास था और उसका प्रयोग हुआ भी किन्तु श्रीकृष्ण ने पांडवों को बचा लिया। अब अगर बात करें ब्रह्मास्त्र की तो उस युग मे भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा और अर्जुन, इन पाँच योद्धाओं के पास ब्रह्मास्त्र था। इनमें से अश्वथामा के पास ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान ही था। कर्ण को इसका पूरा ज्ञान था किंतु वो श्रापग्रस्त था इसी कारण अर्जुन से अंतिम युद्ध मे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग ना कर सका। इसके अतिरिक्त परशुराम के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु उन्होंने युद्ध मे भाग नही लिया। कुछ लोग समझते हैं कि श्रीकृष्ण के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु ऐसा नही है, उनके पास ब्रह्मास्त्र होने का कोई वर्णन महाभारत में नही है। किन्तु श्रीकृष्ण तो श्रीहरि के पूर्णावतार है इसीलिए उनके पास ब्रम्हास्त्र होने, ना होने से कोई फर्क नही पड़ता।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे दिव्यास्त्र भी थे जिनका प्रयोग केवल किसी एक योद्धा को ही था। जैसे प्रस्वापास्त्र केवल भीष्म के पास ही था, जिसका प्रयोग वे परशुराम के विरुद्ध युद्ध मे करने वाले थे किंतु किया नही। नारायणास्त्र का ज्ञान केवल अश्वथामा और श्रीकृष्ण को था और भार्गवास्त्र का ज्ञान केवल कर्ण के पास ही था। इसके अतिरिक्त सुदर्शन चक्र को केवल श्रीकृष्ण और परशुराम ही धारण कर सकते थे और पाशुपतास्त्र केवल अर्जुन के पास था। पता नही ये कितना प्रामाणिक है किंतु कई जगह वर्णन है कि भीष्म और द्रोण के पास ब्रह्मशिरा का ज्ञान भी था जो उन्हें परशुराम से मिला। ब्रह्मशिरा ब्रह्मास्त्र से 4 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है। हालांकि परशुराम ने कर्ण को ये ज्ञान नही दिया और ना ही द्रोण ने अर्जुन और यहाँ तक कि अश्वत्थामा को भी इसका ज्ञान नही दिया।
इतने वृहद विश्लेषण की आवश्यकता इसीलिए पड़ी कि आप ये समझ लें कि महाभारत में केवल अर्जुन के पास ही दिव्यास्त्र नही थे। हाँ, अन्य योद्धाओं की तुलना में उसके पास कुछ अधिक दिव्यास्त्र थे जो उसने इंद्र से प्राप्त किये थे। दूसरे कि जो ये समझते हैं कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग नही हुआ वे भी गलत हैं। उस महायुद्ध में भयंकर मात्रा में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ था। उस युद्ध मे ऐसे कई योद्धा थे जो शीघ्रता से उस युद्ध को समाप्त कर सकते थे। जैसा कि श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि अगर केवल भीष्म नही होते तो वो युद्ध केवल 1 दिन में जीता जा सकता था।

तो अब प्रश्न आता है कि जब महाभारत में इतने महान योद्धा थे तो वो युद्ध 18 दिनों तक क्यों खिंच गया? उत्तर है केवल श्रीकृष्ण के कारण।

आप इस युद्ध के उद्देश्य को जानने का प्रयास कीजिये। श्रीकृष्ण का उद्देश्य इस युद्ध के द्वारा अधिक से अधिक योद्धाओं का नाश कराना था और वो भी दोनों ओर से। कहा जाता है कि उस समय पृथ्वी का भार इतना बढ़ गया था कि उसके बोझ से पृथ्वी फट जाती। पृथ्वी का बोझ कम करना अत्यंत आवश्यक था और श्रीकृष्ण का अवतरण वास्तव में इसी कारण हुआ था, ना कि कंस को मारने के कारण। अगर ये युद्ध जल्दी समाप्त हो जाता तो उनका ये उद्देश्य पूर्ण नही हो पाता। यही कारण है कि उनके ही कारण ये युद्ध इतने दिनों तक चला।

वास्तव में श्रीकृष्ण उस युद्ध मे अद्भुत भूमिका निभा रहे थे। उन्हें दोनो ओर के योद्धाओं का नाश भी कराना था और इस बात का ध्यान भी रखना था कि पांडवों की पराजय ना हो। वो उस युद्ध मे कितने दवाब में होंगे इसका हम और आप अनुमान भी नही लगा सकते।

यही कारण था कि उन्होंने युद्ध मे शस्त्र ना उठाने की प्रतिज्ञा कर ली और उनकी प्रेरणा से बलराम ने भी युद्ध मे भाग नही लिया ताकि वो युद्ध अधिक समय तक चल सके। इन दोनो के युद्ध मे भाग लेने पर संभव था कि युद्ध कुछ जल्दी समाप्त हो जाता और श्रीकृष्ण का उद्देश्य अधूरा रह जाता। जो लोग उनपर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हैं वे ये जान लें कि महाभारत के 36 वर्ष पश्चात जब यादवों की संख्या और बल बहुत अधिक बढ़ गया तो स्वयं श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने ही यादव वंश का नाश कर दिया। गांधारी का श्राप तो बस निमित्तमात्र था।

अब जाते जाते श्रीकृष्ण को एक योद्धा के रूप में भी देख लेते हैं। वे श्रीहरि के पूर्ण अवतार थे और उनकी सभी 16 कलाओं के साथ जन्में थे। श्रीहरि के सभी शस्त्र उनके पास थे किंतु इसपर भी कई युद्ध मे उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि इसके पीछे भी उनका उद्देश्य वही था जो महाभारत युद्ध के पीछे था।

जैसे जरासंध से वे 18 वर्ष तक युद्ध करते रहे और उसकी सेना को समाप्त करने के बाद भी मथुरा छोड़ द्वारिका में आकर बस गए। शाल्व और उनका द्वंद 26 दिनों तक चला था। सुभद्रा के वचन के कारण जब श्रीकृष्ण और अर्जुन में युद्ध हुआ था तो वो 11 दिनों तक चलता रहा जबतक दोनो ने स्वयं युद्ध नही रोका। पौंड्रक और उनका युद्ध 16 दिनों तक चला था, एकलव्य का वध उन्होंने तीन दिन के युद्ध के पश्चात किया। जाम्बवन्त और उनका युद्ध 23 दिनों तक चला। बाणासुर के साथ उनका युद्ध 1 मास तक चला जिसके बाद अंततः भगवान शंकर को बाणासुर की सहायता के लिए आना पड़ा।

इसीलिए ये जान लें कि महाभारत का युद्ध इतने दिन इसी कारण चला क्योंकि श्रीकृष्ण ऐसा ही चाहते थे। और कोई ऐसा नही था जो उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त कर देता।

आशा है आपको उत्तर तर्कसंगत लगा होगा। अब जाते जाते आपको एक प्रश्न के साथ छोड़े जा रही हूँ।

"आपमे से कितने लोगों को लगता है कि वर्तमान में पृथ्वी का भार (जनसंख्या) उतारने के लिए ऐसे ही किसी महायुद्ध की आवश्यकता है?"

जय श्रीकृष्ण। 🚩



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  उन्नीसवें और बीसवें अवतारों में उन्होने यदुवंश मे बलराम और श्रीकृष्ण के नाम से प्रकट होकर पृथ्वी का भार उतारा। उसके बाद कलियुग आ जाने पर मगधदेश मे देवताओ के द्वेषी दैत्यों को मोहित करने के लिये अजन के पुत्र रूप में आपका बुद्धावतार होगा। इसके भी बहुत पीछे जब कलियुग का अंत समीप होगा और राजा लोग प्रायः लुटेरे हो जायेंगे, तब जगत के रक्षक भगवान विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर कल्किरूप में अवतीर्ण होंगे। By वनिता कासनियां पंजाब ? शौनकादि ऋषियों! जैसे अगाध सरोवर से हजारों छोटे-छोटे नाले निकलते है, वैसे ही सत्त्वनिधि भगवान श्रीहरि के असंख्य अवतार हुआ करते हैं। ऋषि, मनु, देवता, प्रजापति, मनुपुत्र और जितने भी महान शक्तिशाली हैं, वे सब-के-सब भगवान के ही अंश हैं। ये सब अवतार तो भगवान के अंशावतार अथवा कलावतार हैं, जब लोग दैत्यों के अत्याचारों से व्याकुल हो उठते हैं, तब युग-युग में अनेक रूप धारण करके भगवान उनकी रक्षा करते हैं। भगवान के दिव्य जन्मों की यह कथा अत्यंत गोपनीय-रहस्यमयी है, जो मनुष्य एकाग्रचित्त से नियमपूर्वक सांयकाल और प्रातःकाल प्रेम से इसका पाठ करता है, वह सब दुःखों से छूट जाता है।

भगवान की लीला अमोध है। वे लीला से ही इस संसार का सृजन, पालन और संहार करते हैं, किंतु इसमे आसक्त नही होते। प्राणियों के अंतःकरण मे छिपे रहकर ज्ञानेंद्रिय और मन के नियंता के रूप में उनके विषयों को ग्रहण भी करते है, परंतु उनसे अलग रहते हैं, वे परम स्वतंत्र है–ये विषय कभी उन्हे लिप्त नहीं कर सकते। जैसे अनजान मनुष्य जादूगर अथवा नट के संकल्प और वचनों से की हुई करामात को नही समझ पाते, वैसे ही अपने संकल्प और वेदवाणी के द्वारा भगवान के प्रकट किये हुये इन नाना नाम और रूपों को तथा उनकी लीलाओ को कुबुद्धि जीव बहुत सी तर्क-युक्तियों के द्वारा नही पहचान सकता।

 भगवान की लीला अमोध है। वे लीला से ही इस संसार का सृजन, पालन और संहार करते हैं, किंतु इसमे आसक्त नही होते। प्राणियों के अंतःकरण मे छिपे रहकर ज्ञानेंद्रिय और मन के नियंता के रूप में उनके विषयों को ग्रहण भी करते है, परंतु उनसे अलग रहते हैं, वे परम स्वतंत्र है–ये विषय कभी उन्हे लिप्त नहीं कर सकते। जैसे अनजान मनुष्य जादूगर अथवा नट के संकल्प और वचनों से की हुई करामात को नही समझ पाते, वैसे ही अपने संकल्प और वेदवाणी के द्वारा भगवान के प्रकट किये हुये इन नाना नाम और रूपों को तथा उनकी लीलाओ को कुबुद्धि जीव बहुत सी तर्क-युक्तियों के द्वारा नही पहचान सकता।