षष्ट स्कन्ध मे भगवान ‘नाम की महिमा’ के सम्बन्ध मे ‘अजामिलोपाख्यान’ है, “नारायण कवच” का वर्णन है जिससे वृत्रासुर का वघ होता है, नारायण कवच वास्तव मे भगवान के विभिन्न नाम है जिसे धारण करने वाले व्यक्ति को कोई परास्त नही कर सकता। ‘पुंसवन विधि’ एक संस्कार है जिसके बारे मे बताया गया है।सप्तम स्कन्ध इसमे ‘प्रहलाद-चरित्र’ के माध्यम से बताया गया है कि हजारों मुसीबत आने पर भी भगवान का नाम न छूटे, यदि भगवान का बैरी पिता ही क्यों न हो तो उसे भी छोड देना चाहिये। मानव-धर्म, वर्ण-धर्म, स्त्री-धर्म, ब्रह्मचर्य गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमो के नियम का कैसे पालन करना चाहिये, इसका निरुपण है। कर्म व्यक्ति को कैसे करना चाहिये, यहि इस स्कन्ध का सार है। By वनिता कासनियां पंजाब !!
षष्ट स्कन्ध मे भगवान ‘नाम की महिमा’ के सम्बन्ध मे ‘अजामिलोपाख्यान’ है, “नारायण कवच” का वर्णन है जिससे वृत्रासुर का वघ होता है, नारायण कवच वास्तव मे भगवान के विभिन्न नाम है जिसे धारण करने वाले व्यक्ति को कोई परास्त नही कर सकता। ‘पुंसवन विधि’ एक संस्कार है जिसके बारे मे बताया गया है।
सप्तम स्कन्ध
इसमे ‘प्रहलाद-चरित्र’ के माध्यम से बताया गया है कि हजारों मुसीबत आने पर भी भगवान का नाम न छूटे, यदि भगवान का बैरी पिता ही क्यों न हो तो उसे भी छोड देना चाहिये। मानव-धर्म, वर्ण-धर्म, स्त्री-धर्म, ब्रह्मचर्य गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमो के नियम का कैसे पालन करना चाहिये, इसका निरुपण है। कर्म व्यक्ति को कैसे करना चाहिये, यहि इस स्कन्ध का सार है।
By वनिता कासनियां पंजाब !!
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