उन्ही प्रभु पहले कौमारसर्ग में सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार – इन चार ब्राह्मणो के रूप में अवतार ग्रहण करके अत्यंत कठिन अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया। दूसरी बार इस संसार के कल्याण के लिये समस्त यज्ञों के स्वामी उन भगवान ने ही रसातल में गयी हुयी पृथ्वी को निकाल लाने के विचार से सूकररूप ग्रहण किया। By वनिता कासनियां पंजाब ऋषियों की सृष्टि में उन्होने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वत तंत्र का उपदेश किया; उसमें कर्मो के द्वारा किस प्रकार कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है, इसका वर्णन है। धर्मपत्नी मूर्ति के गर्भ से उन्होने नर-नारायण के रूप में चौथा अवतार ग्रहण किया। इस अवतार मे उन्होने ऋषि बनकर मन और इंद्रियों का सर्वथा संयम करके बड़ी कठिन तपस्या की।
उन्ही प्रभु पहले कौमारसर्ग में सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार – इन चार ब्राह्मणो के रूप में अवतार ग्रहण करके अत्यंत कठिन अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया। दूसरी बार इस संसार के कल्याण के लिये समस्त यज्ञों के स्वामी उन भगवान ने ही रसातल में गयी हुयी पृथ्वी को निकाल लाने के विचार से सूकररूप ग्रहण किया।
ऋषियों की सृष्टि में उन्होने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वत तंत्र का उपदेश किया; उसमें कर्मो के द्वारा किस प्रकार कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है, इसका वर्णन है। धर्मपत्नी मूर्ति के गर्भ से उन्होने नर-नारायण के रूप में चौथा अवतार ग्रहण किया। इस अवतार मे उन्होने ऋषि बनकर मन और इंद्रियों का सर्वथा संयम करके बड़ी कठिन तपस्या की।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें