पाँचवे अवतार में वे सिद्धों के स्वामी कपिल के रूप में प्रकट हुये और तत्त्वों का निर्णय करने वाले सांख्य – शास्त्र का, जो समय के फेर से लुप्त हो गया था, आसुरि नामक ब्राह्मण को उपदेश किया। अनुसूया के वर माँगने पर छ्ठे अवतार मे वे अत्रि की संतान – दत्तात्रेय हुये। इस अवतार में उन्होने अलर्क एवम प्रह्लाद आदि को ब्रह्मज्ञान का उपदेश किया। By वनिता कासनियां पंजाब सातवीं बार रुचि प्रजापति की आकूति नामक पत्नी से यज्ञ के रूप मे उन्होने अवतार ग्रहण किया और अपने पुत्र याम आदि देवताओं के साथ स्वायम्भुव मंवंतर की रक्षा की। राजा नाभि की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में भगवान ने आठवाँ अवतार ग्रहण किया। इस रूप में उन्होने परमहंसों का मार्ग, जो सभी आश्रमियों के लिये वंदनीय है, दिखाया।
पाँचवे अवतार में वे सिद्धों के स्वामी कपिल के रूप में प्रकट हुये और तत्त्वों का निर्णय करने वाले सांख्य – शास्त्र का, जो समय के फेर से लुप्त हो गया था, आसुरि नामक ब्राह्मण को उपदेश किया। अनुसूया के वर माँगने पर छ्ठे अवतार मे वे अत्रि की संतान – दत्तात्रेय हुये। इस अवतार में उन्होने अलर्क एवम प्रह्लाद आदि को ब्रह्मज्ञान का उपदेश किया।
By वनिता कासनियां पंजाब
सातवीं बार रुचि प्रजापति की आकूति नामक पत्नी से यज्ञ के रूप मे उन्होने अवतार ग्रहण किया और अपने पुत्र याम आदि देवताओं के साथ स्वायम्भुव मंवंतर की रक्षा की। राजा नाभि की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में भगवान ने आठवाँ अवतार ग्रहण किया। इस रूप में उन्होने परमहंसों का मार्ग, जो सभी आश्रमियों के लिये वंदनीय है, दिखाया।
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