चक्र्पाणि भगवान की शक्ति और पराक्रम अनंत है – उनकी कोई थाह नही पा सकता। वे सारे जगत के निर्माता होने पर भी इससे सर्वथा परे है। उनके स्वरूप को अथवा उनकी लीला के रहस्य को वही जान सकता है, जो नित्य – निरंतर निष्कपट भाव से उनके चरणकमलों की दिव्य गंध का सेवन करता है- सेवाभाव से उनके चरणो का चिंतन करता रहता है। शौनकादि ऋषियों! आप लोग बड़े ही सौभाग्यशाली और धन्य है जो इस जीवन मे और विघ्न-बाधाओं से भरे इस संसार मे समस्त लोकों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण से वह सर्वात्मक आत्मभाव, वह अनिर्वचनीय अनन्य प्रेम करते है, जिससे फिर जन्म -मरणरूप संसार के भंयकर चक्र मे नही पड़ना होता। By वनिता कासनियां पंजाब भगवान वेदव्यास ने यह वेदों के समान भगवच्चरित्र से परिपूर्ण भागवत नाम का पुराण बनाया है। उन्होने इस श्लाघनीय, कल्याणकारी और महान पुराण को लोगो के परम कल्याण के लिये अपने आत्मज्ञानिशिरोमणि पुत्र को ग्रहण कराया। इसमे सारे वेद और इतिहासों का सार-सार संग्रह किया गया है। शुकदेवजी राजा परीक्षित को यह सुनाया। उस समय वे परमार्षियो से घिरे हुये आमरण अनशन का व्रत लेकर गंगातट पर बैठे हुये थे।
चक्र्पाणि भगवान की शक्ति और पराक्रम अनंत है – उनकी कोई थाह नही पा सकता। वे सारे जगत के निर्माता होने पर भी इससे सर्वथा परे है। उनके स्वरूप को अथवा उनकी लीला के रहस्य को वही जान सकता है, जो नित्य – निरंतर निष्कपट भाव से उनके चरणकमलों की दिव्य गंध का सेवन करता है- सेवाभाव से उनके चरणो का चिंतन करता रहता है। शौनकादि ऋषियों! आप लोग बड़े ही सौभाग्यशाली और धन्य है जो इस जीवन मे और विघ्न-बाधाओं से भरे इस संसार मे समस्त लोकों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण से वह सर्वात्मक आत्मभाव, वह अनिर्वचनीय अनन्य प्रेम करते है, जिससे फिर जन्म -मरणरूप संसार के भंयकर चक्र मे नही पड़ना होता।
भगवान वेदव्यास ने यह वेदों के समान भगवच्चरित्र से परिपूर्ण भागवत नाम का पुराण बनाया है। उन्होने इस श्लाघनीय, कल्याणकारी और महान पुराण को लोगो के परम कल्याण के लिये अपने आत्मज्ञानिशिरोमणि पुत्र को ग्रहण कराया। इसमे सारे वेद और इतिहासों का सार-सार संग्रह किया गया है। शुकदेवजी राजा परीक्षित को यह सुनाया। उस समय वे परमार्षियो से घिरे हुये आमरण अनशन का व्रत लेकर गंगातट पर बैठे हुये थे।
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