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।। जय श्री राम ।।भगवान राम के बारे में कुछ ऐसे तथ्य जो बहुत कम लोग ही जानते है ।1- राम शब्द का वैदिक अर्थ है ‘जिसका अंतर दिव्य रोशनी से भरा हो’।2- भगवान राम के जन्म के लिए जब दशरथ ने यज्ञ करवाया तो वह 60 साल के थे।3- रामायण के हर 1000 श्लोक– गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैं। रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है। यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार है। गायत्री मंत्र को सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लेखित किया गया है।4- रामायण के अनुसार वानर सेना ने 5 दिन में समुद्र के ऊपर पुल बना लिया था।5- भगवान विश्वकर्मा द्वारा भगवान शिव के कहने पर लंका का निर्माण करवाया गया था और रावण के पिता ने भगवान शिव से यह लंका दान में मांग ली थी। इसके बाद अपने भाई कुबेर से युद्ध कर रावण ने लंका पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।6- रामायण के अनुसार सिर्फ 33 देवी-देवता हैं।7- जब दशरथ जी ने भगवान राम को वनवास के लिए कहा तो उन्हें साथ ही ढेरों धन साथ ले जाने को कहा जिससे उन्हें वनवास में कोई कठिनाई न हो, लेकिन कैकयी ने झउसके लिए मना कर दिया।8- जब विभीषण और सब ने रावण को युद्ध में हथियार डालने को कहा तो रावण ने कहा कि “अगर राम और लक्ष्मण सामान्य इंसान हैं तो वो सीता को जीतकर सारे इंसानों पर राज करेगा और अगर वो भगवान हैं तो वो उनके तीरों से उनके हाथों मरेगा और मोक्ष प्राप्त कर विष्णु में मिल जायेगा” । इससे साबित होता है कि वो कोई पागल राजा नहीं था।9- भगवान राम ने सरयु में जलसमाधि ली थी। जब माँ सीता ने उनकी माँ भूमि देवी से उन्हें वापस अपनी गोद में ले लेने की प्रार्थना की तो वो धरती फट गई और वह उसमें समा गई। लव-कुश ने अपनी माँ को रोकने की कोशिश की। कुश अपनी माँ को दूर जाते ना देख पाया और अपनी माँ के पीछे ही धरती में समा गया। इस सब के बाद भगवान राम के लिए इस इंसानी जीवन की पीड़ा असहनीय हो गई और उन्होंने सीता के वियोग में सीता-सीता पुकारते हुए सरयु में समाधि ले ली।10 - भगवान राम जब सीता को ढूंढ रहे थे उस वक्त सती सीता के रूप मेंं ये जानने के लिए आई कि क्या राम सच मेंं भगवान हैं। इसके बाद जब वह भगवान राम के पास आई तो उन्होंने तुरंत पहचान लिया क्योंकि रामजी अन्तर्यामी थेवनिता कासनियां पंजाब द्वाराजय_सियाराम। 🙏💐🙏

 ।। जय श्री राम ।। भगवान राम के बारे में कुछ ऐसे तथ्य जो बहुत कम लोग ही जानते है । 1- राम शब्द का वैदिक अर्थ है ‘जिसका अंतर दिव्य रोशनी से भरा हो’। 2- भगवान राम के जन्म के लिए जब दशरथ ने यज्ञ करवाया तो वह 60 साल के थे। 3- रामायण के हर 1000 श्लोक– गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैं। रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है। यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार है। गायत्री मंत्र को सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लेखित किया गया है। 4- रामायण के अनुसार वानर सेना ने 5 दिन में समुद्र के ऊपर पुल बना लिया था। 5- भगवान विश्वकर्मा द्वारा भगवान शिव के कहने पर लंका का निर्माण करवाया गया था और रावण के पिता ने भगवान शिव से यह लंका दान में मांग ली थी। इसके बाद अपने भाई कुबेर से युद्ध कर रावण ने लंका पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। 6- रामायण के अनुसार सिर्फ 33 देवी-देवता हैं। 7- जब दशरथ जी ने भगवान राम को वनवास के लिए कहा तो उन्हें साथ ही ढेरों धन साथ ले जाने को कहा जिससे उन्हें वनवास में कोई कठिनाई न हो, लेकिन कैकय...
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भगवान श्रीकृष्ण जब धर्म, ज्ञान आदि के साथ अपने परमधाम को पधार गये, तब इस कलियुग मे जो लोग अज्ञानरूपी अंधकार से अँधे हो रहे है, उनके लिये यह पुराणरूपी सूर्य इस समय प्रकट हुआ है। शौनकादि ऋषियों! जब महातेजस्वी श्रीशुकदेवजी महाराज वहाँ इस पुराण की कथा कह रहे थे, तब मै भी वहाँ बैठा था। वहीं मैंने उनकी कृपापूर्ण अनुमति से इसका अध्ययन किया। मेरा जैसा अध्ययन है और मेरी बुद्धि ने जितना जिस प्रकार इसको ग्रहण किया है, उसी के अनुसार इसे मैं आप लोगों को सुनाऊँगा। पुराणों के क्रम में भागवत पुराण पाँचवा स्थान है पर लोकप्रियता की दृष्टि से यह सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वैष्णव 12 स्कंध, 335 अध्याय और 18 हज़ार श्लोकों के इस पुराण को महापुराण मानते हैं। साथ ही उच्च दार्शनिक विचारों की भी इसमें प्रचुरता है। परवर्ती कृष्ण-काव्य की आराध्या ‘राधा’ का उल्लेख भागवत में नहीं मिलता। इस पुराण का पूरा नाम श्रीमद् भागवत पुराण है। मान्यता कुछ लोग इसे महापुराण न मानकर देवी-भागवत को महापुराण मानते हैं। वे इसे उपपुराण बताते हैं। पर बहुसंख्यक मत इस पक्ष में नहीं हैं। भागवत के रचनाकाल के संबंध में भी विवाद है। दयानंद सरस्वती ने इसे तेरहवीं शताब्दी की रचना बताया है, पर अधिकांश विद्वान इसे छठी शताब्दी का ग्रंथ मानते हैं। इसे किसी दक्षिणात्य विद्वान की रचना माना जाता है। भागवत पुराण का दसवां स्कंध भक्तों में विशेष प्रिय है। By वनिता कासनियां पंजाब !! सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- एकोऽहम्बहुस्यामि। अर्थात् एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान स्वयं अपनी माया से अपने स्वरूप में काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं। तब काल से तीनों गुणों- सत्व, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्वभाव उस क्षोभ को रूपान्तरित कर देता है। तब कर्म गुणों के महत्त्व को जन्म देता है जो क्रमश: अहंकार, आकाश, वायु तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियाँ और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं। इन सभी के परस्पर मिलने से व्यष्टि-समष्टि रूप पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एक हज़ार वर्ष तक ऐसे ही पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों वाले विराट पुरुष को प्रकट किया। उस विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए।

 भगवान श्रीकृष्ण जब धर्म, ज्ञान आदि के साथ अपने परमधाम को पधार गये, तब इस कलियुग मे जो लोग अज्ञानरूपी अंधकार से अँधे हो रहे है, उनके लिये यह पुराणरूपी सूर्य इस समय प्रकट हुआ है। शौनकादि ऋषियों! जब महातेजस्वी श्रीशुकदेवजी महाराज वहाँ इस पुराण की कथा कह रहे थे, तब मै भी वहाँ बैठा था। वहीं मैंने उनकी कृपापूर्ण अनुमति से इसका अध्ययन किया। मेरा जैसा अध्ययन है और मेरी बुद्धि ने जितना जिस प्रकार इसको ग्रहण किया है, उसी के अनुसार इसे मैं आप लोगों को सुनाऊँगा। पुराणों के क्रम में भागवत पुराण पाँचवा स्थान है पर लोकप्रियता की दृष्टि से यह सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वैष्णव 12 स्कंध, 335 अध्याय और 18 हज़ार श्लोकों के इस पुराण को महापुराण मानते हैं। साथ ही उच्च दार्शनिक विचारों की भी इसमें प्रचुरता है। परवर्ती कृष्ण-काव्य की आराध्या ‘राधा’ का उल्लेख भागवत में नहीं मिलता। इस पुराण का पूरा नाम श्रीमद् भागवत पुराण है। मान्यता  कुछ लोग इसे महापुराण न मानकर देवी-भागवत को महापुराण मानते हैं। वे इसे उपपुराण बताते हैं। पर बहुसंख्यक मत इस पक्ष में नहीं हैं। भागवत के रचनाकाल के संबंध में भी विवाद है। दय...

चक्र्पाणि भगवान की शक्ति और पराक्रम अनंत है – उनकी कोई थाह नही पा सकता। वे सारे जगत के निर्माता होने पर भी इससे सर्वथा परे है। उनके स्वरूप को अथवा उनकी लीला के रहस्य को वही जान सकता है, जो नित्य – निरंतर निष्कपट भाव से उनके चरणकमलों की दिव्य गंध का सेवन करता है- सेवाभाव से उनके चरणो का चिंतन करता रहता है। शौनकादि ऋषियों! आप लोग बड़े ही सौभाग्यशाली और धन्य है जो इस जीवन मे और विघ्न-बाधाओं से भरे इस संसार मे समस्त लोकों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण से वह सर्वात्मक आत्मभाव, वह अनिर्वचनीय अनन्य प्रेम करते है, जिससे फिर जन्म -मरणरूप संसार के भंयकर चक्र मे नही पड़ना होता। By वनिता कासनियां पंजाब भगवान वेदव्यास ने यह वेदों के समान भगवच्चरित्र से परिपूर्ण भागवत नाम का पुराण बनाया है। उन्होने इस श्लाघनीय, कल्याणकारी और महान पुराण को लोगो के परम कल्याण के लिये अपने आत्मज्ञानिशिरोमणि पुत्र को ग्रहण कराया। इसमे सारे वेद और इतिहासों का सार-सार संग्रह किया गया है। शुकदेवजी राजा परीक्षित को यह सुनाया। उस समय वे परमार्षियो से घिरे हुये आमरण अनशन का व्रत लेकर गंगातट पर बैठे हुये थे।

 चक्र्पाणि भगवान की शक्ति और पराक्रम अनंत है – उनकी कोई थाह नही पा सकता। वे सारे जगत के निर्माता होने पर भी इससे सर्वथा परे है। उनके स्वरूप को अथवा उनकी लीला के रहस्य को वही जान सकता है, जो नित्य – निरंतर निष्कपट भाव से उनके चरणकमलों की दिव्य गंध का सेवन करता है- सेवाभाव से उनके चरणो का चिंतन करता रहता है। शौनकादि ऋषियों! आप लोग बड़े ही सौभाग्यशाली और धन्य है जो इस जीवन मे और विघ्न-बाधाओं से भरे इस संसार मे समस्त लोकों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण से वह सर्वात्मक आत्मभाव, वह अनिर्वचनीय अनन्य प्रेम करते है, जिससे फिर जन्म -मरणरूप संसार के भंयकर चक्र मे नही पड़ना होता। By वनिता कासनियां पंजाब भगवान वेदव्यास ने यह वेदों के समान भगवच्चरित्र से परिपूर्ण भागवत नाम का पुराण बनाया है। उन्होने इस श्लाघनीय, कल्याणकारी और महान पुराण को लोगो के परम कल्याण के लिये अपने आत्मज्ञानिशिरोमणि पुत्र को ग्रहण कराया। इसमे सारे वेद और इतिहासों का सार-सार संग्रह किया गया है। शुकदेवजी राजा परीक्षित को यह सुनाया। उस समय वे परमार्षियो से घिरे हुये आमरण अनशन का व्रत लेकर गंगातट पर बैठे हुये थे।

भगवान की लीला अमोध है। वे लीला से ही इस संसार का सृजन, पालन और संहार करते हैं, किंतु इसमे आसक्त नही होते। प्राणियों के अंतःकरण मे छिपे रहकर ज्ञानेंद्रिय और मन के नियंता के रूप में उनके विषयों को ग्रहण भी करते है, परंतु उनसे अलग रहते हैं, वे परम स्वतंत्र है–ये विषय कभी उन्हे लिप्त नहीं कर सकते। जैसे अनजान मनुष्य जादूगर अथवा नट के संकल्प और वचनों से की हुई करामात को नही समझ पाते, वैसे ही अपने संकल्प और वेदवाणी के द्वारा भगवान के प्रकट किये हुये इन नाना नाम और रूपों को तथा उनकी लीलाओ को कुबुद्धि जीव बहुत सी तर्क-युक्तियों के द्वारा नही पहचान सकता।

 भगवान की लीला अमोध है। वे लीला से ही इस संसार का सृजन, पालन और संहार करते हैं, किंतु इसमे आसक्त नही होते। प्राणियों के अंतःकरण मे छिपे रहकर ज्ञानेंद्रिय और मन के नियंता के रूप में उनके विषयों को ग्रहण भी करते है, परंतु उनसे अलग रहते हैं, वे परम स्वतंत्र है–ये विषय कभी उन्हे लिप्त नहीं कर सकते। जैसे अनजान मनुष्य जादूगर अथवा नट के संकल्प और वचनों से की हुई करामात को नही समझ पाते, वैसे ही अपने संकल्प और वेदवाणी के द्वारा भगवान के प्रकट किये हुये इन नाना नाम और रूपों को तथा उनकी लीलाओ को कुबुद्धि जीव बहुत सी तर्क-युक्तियों के द्वारा नही पहचान सकता।

आत्मा का आरोप या प्रवेश होने से वही जीव कहलाता है और इसी का बार-बार जन्म होता है। उपर्युक्त सूक्ष्म और स्थूल शरीर अविद्या से ही आरोपित है। जिस अवस्था मे आत्मस्वरूप के ज्ञान से यह आरोप दूर हो जाता है, उसी समय ब्रह्म का साक्षात्कार होता है। तत्त्वज्ञानी लोग जानते है कि जिस समय यह बुद्धिरूपा परमेश्वर की माया निवृत्त हो जाती है, उस समय जीव परमानंदमय हो जाता है और अपनी स्वरूप-महिमा मे प्रतिष्ठित होता है। वास्तव मे जिनके जन्म नही है और कर्म भी नही हैं, उन हृदयेश्वर भगवान के अप्राकृत जन्म और कर्मो का तत्त्वज्ञानी लोग इसी प्रकार वर्णन करते है; क्योंकि उनके जन्म और कर्म वेदों के अत्यंत गोपनीय रहस्य हैंBy वनिता कासनियां पंजाब ?

आत्मा का आरोप या प्रवेश होने से वही जीव कहलाता है और इसी का बार-बार जन्म होता है। उपर्युक्त सूक्ष्म और स्थूल शरीर अविद्या से ही आरोपित है। जिस अवस्था मे आत्मस्वरूप के ज्ञान से यह आरोप दूर हो जाता है, उसी समय ब्रह्म का साक्षात्कार होता है। तत्त्वज्ञानी लोग जानते है कि जिस समय यह बुद्धिरूपा परमेश्वर की माया निवृत्त हो जाती है, उस समय जीव परमानंदमय हो जाता है और अपनी स्वरूप-महिमा मे प्रतिष्ठित होता है। वास्तव मे जिनके जन्म नही है और कर्म भी नही हैं, उन हृदयेश्वर भगवान के अप्राकृत जन्म और कर्मो का तत्त्वज्ञानी लोग इसी प्रकार वर्णन करते है; क्योंकि उनके जन्म और कर्म वेदों के अत्यंत गोपनीय रहस्य हैंBy वनिता कासनियां पंजाब ?

प्राकृत स्वरूपरहित चिन्मय भगवान का जो यह स्थूल जगदाकार रूप है, यह उनकी माया के महत्तत्वादि गुणो से भगवान में ही कल्पित है। जैसे बादल वायु के आश्रय रहते है और धूसरपना धूल मे होता है, परंतु अल्पबुद्धि मनुष्य बादलों का आकाश में और धूसरपने का वायु मे आरोप करते हैं-वैसे ही अविवेकी पुरुष सबके साक्षी आत्मा मे स्थूल दृश्यरूप जगत का आरोप करते हैं। इस स्थूलरूप से परे भगवान का एक सूक्ष्म अव्यक्त रूप है- जो न तो स्थूल की तरह आकारादि गुणोवाला है और ना देखने, सुनने मे ही आ सकता है; वही सूक्ष्मशरीर है। By वनिता कासनियां पंजाब ?

 प्राकृत स्वरूपरहित चिन्मय भगवान का जो यह स्थूल जगदाकार रूप है, यह उनकी माया के महत्तत्वादि गुणो से भगवान में ही कल्पित है। जैसे बादल वायु के आश्रय रहते है और धूसरपना धूल मे होता है, परंतु अल्पबुद्धि मनुष्य बादलों का आकाश में और धूसरपने का वायु मे आरोप करते हैं-वैसे ही अविवेकी पुरुष सबके साक्षी आत्मा मे स्थूल दृश्यरूप जगत का आरोप करते हैं। इस स्थूलरूप से परे भगवान का एक सूक्ष्म अव्यक्त रूप है- जो न तो स्थूल की तरह आकारादि गुणोवाला है और ना देखने, सुनने मे ही आ सकता है; वही सूक्ष्मशरीर है। By वनिता कासनियां पंजाब ?

उन्नीसवें और बीसवें अवतारों में उन्होने यदुवंश मे बलराम और श्रीकृष्ण के नाम से प्रकट होकर पृथ्वी का भार उतारा। उसके बाद कलियुग आ जाने पर मगधदेश मे देवताओ के द्वेषी दैत्यों को मोहित करने के लिये अजन के पुत्र रूप में आपका बुद्धावतार होगा। इसके भी बहुत पीछे जब कलियुग का अंत समीप होगा और राजा लोग प्रायः लुटेरे हो जायेंगे, तब जगत के रक्षक भगवान विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर कल्किरूप में अवतीर्ण होंगे। By वनिता कासनियां पंजाब ? शौनकादि ऋषियों! जैसे अगाध सरोवर से हजारों छोटे-छोटे नाले निकलते है, वैसे ही सत्त्वनिधि भगवान श्रीहरि के असंख्य अवतार हुआ करते हैं। ऋषि, मनु, देवता, प्रजापति, मनुपुत्र और जितने भी महान शक्तिशाली हैं, वे सब-के-सब भगवान के ही अंश हैं। ये सब अवतार तो भगवान के अंशावतार अथवा कलावतार हैं, जब लोग दैत्यों के अत्याचारों से व्याकुल हो उठते हैं, तब युग-युग में अनेक रूप धारण करके भगवान उनकी रक्षा करते हैं। भगवान के दिव्य जन्मों की यह कथा अत्यंत गोपनीय-रहस्यमयी है, जो मनुष्य एकाग्रचित्त से नियमपूर्वक सांयकाल और प्रातःकाल प्रेम से इसका पाठ करता है, वह सब दुःखों से छूट जाता है।

  उन्नीसवें और बीसवें अवतारों में उन्होने यदुवंश मे बलराम और श्रीकृष्ण के नाम से प्रकट होकर पृथ्वी का भार उतारा। उसके बाद कलियुग आ जाने पर मगधदेश मे देवताओ के द्वेषी दैत्यों को मोहित करने के लिये अजन के पुत्र रूप में आपका बुद्धावतार होगा। इसके भी बहुत पीछे जब कलियुग का अंत समीप होगा और राजा लोग प्रायः लुटेरे हो जायेंगे, तब जगत के रक्षक भगवान विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर कल्किरूप में अवतीर्ण होंगे। By वनिता कासनियां पंजाब ? शौनकादि ऋषियों! जैसे अगाध सरोवर से हजारों छोटे-छोटे नाले निकलते है, वैसे ही सत्त्वनिधि भगवान श्रीहरि के असंख्य अवतार हुआ करते हैं। ऋषि, मनु, देवता, प्रजापति, मनुपुत्र और जितने भी महान शक्तिशाली हैं, वे सब-के-सब भगवान के ही अंश हैं। ये सब अवतार तो भगवान के अंशावतार अथवा कलावतार हैं, जब लोग दैत्यों के अत्याचारों से व्याकुल हो उठते हैं, तब युग-युग में अनेक रूप धारण करके भगवान उनकी रक्षा करते हैं। भगवान के दिव्य जन्मों की यह कथा अत्यंत गोपनीय-रहस्यमयी है, जो मनुष्य एकाग्रचित्त से नियमपूर्वक सांयकाल और प्रातःकाल प्रेम से इसका पाठ करता है, वह सब दुःखों से छूट जाता है।